नीतीश कुमार को लगी चोट, लालू यादव और तेजस्वी को हो रहा दर्द; बिहार विधानसभा के उपचुनाव में ये क्या खेल
भाजपा के लिए फायदे वाली बात यह है कि बिहार के CM नीतीश कुमार के पेट की चोट के कारण दोनों ही जगह प्रचार में नहीं जा रहे। भले ही दलों की साख इसमें लगी हो।
रांची, आलोक मिश्रा। इस समय देश की निगाहें अगर हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव पर लगी हैं तो बिहार में मोकामा और गोपालगंज विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव चर्चा का विषय हैं। ये उपचुनाव सभी के
लिए महत्वपूर्ण हैं चाहे वह दल दंगल में शामिल हो या नहीं। इस उपचुनाव में मुख्य प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल हैं और इनमें एक-एक सीट दोनों के पास थी। आंकड़े इसी स्थिति को दोहराने की तरफ झुके दिखाई देते हैं तो समीकरण कुछ भी हो सकता है की तरफ। यदि भाजपा के हाथ दोनों आती हैं तो नीतीश कुमार का झटका उसके लिए मायने नहीं रखेगा और यदि राजद को यह मौका मिलता है तो सदन में समीकरण उसके पक्ष में चले जाएंगे।
भाजपा के लिए फायदे वाली बात यह है कि नीतीश कुमार पेट की चोट के कारण दोनों ही जगह प्रचार में नहीं जा रहे। भले ही दलों की साख इसमें लगी हो, लेकिन देखा जाए तो मोकामा से अनंत सिंह व गोपालगंज से भाजपा के सुभाष सिंह वर्ष 2005 से ही जीतते आ रहे हैं। एके 47 हथियार रखने के आरोप में अनंत सिंह के जेल जाने और सदस्यता रद होने के कारण मोकामा सीट रिक्त हुई है, जबकि बीमारी से सुभाष सिंह का देहांत होने से गोपालगंज सीट। इन सीटों से दोनों की पत्नी चुनाव मैदान में हैं। राजद ने अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी और गोपालगंज से भाजपा ने सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी को मैदान में उतारा है।
गोपालगंज से समीकरण दिलचस्प
पुराने आंकड़े इतिहास दोहराने की गवाही देते हैं, लेकिन स्थिति ऐसी नहीं है। मोकामा में यादव-भूमिहार के आपसी विरोध के कारण भूमिहार वोट राजद से दूरी बनाते बताए जा रहे हैं। विरोध में भाजपा ने रालोजपा (पारस गुट) नेता पूर्व सांसद सूरजभान के भाई नलिनी रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की पत्नी सोनम देवी को उतारा है। बाहुबल में सूरजभान अनंत सिंह से कम नहीं हैं। इसलिए इस टक्कर को कड़ी माना जा रहा है। हालांकि वर्ष 2015 में अनंत सिंह ने निर्दलीय लड़कर यहां से सीट जीती थी। इसलिए पलड़ा उनका कमजोर नहीं माना जा सकता। गोपालगंज से समीकरण दिलचस्प हैं।