मौसम विभाग के डेटा के मुताबिक 2019 में 15 अक्टूबर तक मॉनसून खत्म हुआ था। विभाग ने इस साल के लिए भी यही अनुमान जताया है कि 20 अक्टूबर तक देश से मॉनसून चला जाएगा। वहीं 2020 में भी मॉनसून 28 सितंबर को आया था और 28 अक्टूबर को समाप्त हुआ था। बीते साल यह 25 अक्टूबर को समाप्त हुआ था। 1975 से 2021 तक यह 7वां मौका था, जब मॉनसून में इतनी देरी हुई थी। अब एक बार फिर से वही ट्रेंड कायम है। ऐसे में कृषि वैज्ञानिक यह सवाल भी उठा रहे हैं कि क्या मॉनसून के ट्रेंड को देखते हुए फसल चक्र में तब्दीली कर देनी चाहिए।
अक्टूबर तक खिंच रहा है मॉनसून, दिवालियों तक रहती है हल्की गर्मी
बीते कई सालों से मॉनसून अक्टूबर तक खिंच रहा है। इसके अलावा सर्दी भी देरी से आ रही है और देर तक बनी रहती है। करीब एक दशक पहले दिवाली तक अच्छी खासी सर्दी होने लगती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है। सर्दी में देरी होती रही है और होली तक कई बार बनी रहती है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि अब भारत में मॉनसून के ट्रेंड को देखते हुए फसल चक्र में बदलाव करना ही चाहिए। दरअसल देश में 60 फीसदी खेती योग्य भूमि के लिए सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं है। इन इलाकों में मॉनसून ही अहम होता है और उसकी देरी से फसल प्रभावित होती है।
फसलों का पैटर्न बदलना क्यों है जरूरी, क्या कहते हैं एक्सपर्ट
इसलिए मॉनसून के अनुसार ही फसल चक्र तय करना फायदेमंद रह सकता है। मॉनसून में देरी, सर्दियों का देर से शुरू होना क्लाइमेट चेंज के भी संकेत हो सकते हैं। खुद मौसम विभाग ने 2020 में मॉनसून में देरी को लेकर माना था कि क्लाइमेट चेंज भी इसकी वजह हो सकता है। भारत ही नहीं बल्कि कई देशों में इस तरह का व्यापक परिवर्तन देखने को मिला है। इस साल पाकिस्तान में भी कई राज्यों में भारी बारिश हुई और इसके चलते कराची समेत कई शहर बुरी तरह डूब गए थे। तब पाकिस्तान के पर्यावरण मंत्री ने भी कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के साइड इफेक्ट का ग्राउंड जीरो पाक बन गया है।
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