एकनाथ शिंदे को मिला चुनाव चिह्न, ‘तलवार-ढाल’ से होगा उद्धव की ‘मशाल’ का मुकाबला
चुनाव आयोग ने मंगलवार को एकनाथ शिंदे गुट को भी चुनाव चिह्न जारी कर दिया है. आयोग ने उन्हें दो तलवारें और ढाल वाला चिह्न जारी किया है. शिंदे गुट ने चुनाव आयोग को दोबारा विकल्प भेजे थे, इससे पहले भेजे गए तीनों विक्लप आयोग ने खारिज कर दिए थे. मालूम हो कि उद्धाव ठाकरे को टार्च और मशाल वाला चिह्न जारी किया गया है.
चुनाव आयोग ने मंगलवार को एकनाथ शिंदे गुट को भी चुनाव चिह्न जारी कर दिया है. आयोग ने उन्हें दो तलवारें और ढाल वाला चिह्न जारी किया है. मालूम हो कि उद्धाव ठाकरे को टार्च और मशाल वाला चिह्न जारी किया गया है. वहीं उनकी पार्टी का नाम शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे रखा गया है. इसके बाद चुनाव आयोग ने एक एकनाथ शिंदे से चुनाव चिह्न के लिए तीन विकल्प मांगे थे. दिए गए विकल्पों के आधार पर शिंदे गुट को यह चिह्न जारी किया गया है. एकनाथ शिंदे गुट को सोमवार को सोमवार को बालासाहेबंची शिवसेना नाम दिया गया है.
पहले भेजे विकल्पों को आयोग ने कर दिया था खारिज
एकनाथ शिंदे गुट ने इससे पहले भी चुनाव आयोग को तीन विकल्प दिए थे, लेकिन चुनाव आयोग ने उन तीन विकल्पों में से दो को तो रिजेक्ट कर दिया, वहीं तीसरा वाला क्योंकि डीएमके के चुनाव चिन्ह से मेल खा रहा था, ऐसे में उसे भी स्वीकार नहीं किया गया.
ऐसा है एकनाथ शिंदे गुट को जारी किया गया चुनाव चिह्न
बताया जा रहा है कि शिंदे खेमे की तरफ से त्रिशूल, गदा और उगते सूरज चुनावी चिन्ह के लिए भेजे गए थे, लेकिन चुनाव आयोग ने त्रिशूल और गदा को धार्मिक बताया और उगते सूरज को डीएमके का चुनावी चिन्ह. ऐसे में शिंदे गुट को दोबारा तीन विकल्प भेजने के लिए गया
सत्ता परिवर्तन के बाद तेज हुई उद्धव-शिंदे में जंग
उद्धव बनाम एकनाथ शिंदे की जंग तीखी होती जा रही है. इसकी शुरुआत तो सत्ता परिवर्तन के साथ हो गई थी जब उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया, लेकिन इसके बाद शिवसेना के वर्चस्व को बचाने वाली जंग ने भी तनाव कम करने का मौका नहीं दिया.
चुनाव चिन्ह वाली लड़ाई ने विवाद को और ज्यादा बढ़ाने का काम किया था. अब दोनों उद्धव और शिंदे कैंप को ना शिवसेना नाम दिया गया है और ना ही वो वाला चुनाव चिन्ह मिला है. इससे पहले शिवाजी पार्क में दशहरा रैली को लेकर भी उद्धव और शिंदे के बीच में एक लंबी कानूनी लड़ाई देखने को मिल गई थी. बाद में जीत जरूर उद्धव ठाकरे की हुई लेकिन दोनों ही रैलियों में आई बड़ी भीड़ ने दावों का दौर फिर शुरू कर दिया