श्रद्धा के साथ अपने पति के लंबी उम्र की कामना करते हैं और खुशी-खुशी सोलह सिंगार करके पूरी
मुरलीगंज मधेपुरा संवाददाता मुकेश मनी
मुरलीगंज मधेपुरा बिहार / हर एक गांव हर आंगन गली मोहल्ले में प्रकृति एवं मानव के अटूट रिश्ते का प्रतीक सभी माताओं एवं बहनों यह वट सावित्री व्रत कथा का पूजा करते हैंऔर बहुत ही श्रद्धा के साथ अपने पति के लंबी उम्र की कामना करते हैं और खुशी-खुशी सोलह सिंगार करके पूरी तरह सज धज कर बरगद का पेड़ के पास जाकर श्रद्धा से यह पूजा मनाते हैं अपने जानकारी अनुसार बता दू देवी सावित्री ने अपने पति के प्राण यमराज से वापस लेने वाली देवी सावित्री भारतीय संस्कृति में संकल्प और साहस का प्रतीक हैं> यमराज के सामने खड़े होने का साहस करने वाली सावित्री की पौराणिक कथा भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है। सावित्री के दृढ़ संकल्प का ही उत्सव है वट सावित्री व्रत। इस व्रत की उत्तर भारत में बहुत मान्यता है। इस बार यह 10 जून को कर रहा है। इसे ज्येष्ठ कृष्णपक्ष त्रयोदशी से अमावस्या यानी तीन दिन तक मनाने की परम्परा है, किंतु कुछ जगहों पर एक दिन की निर्जल पूजा होती है। दक्षिण भारत में यह वट पूर्णिमा के नाम से ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है।इस व्रत में वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। वट वृक्ष को आयुर्वेद के अनुसार परिवार का वैद्य माना जाता है। प्राचीन ग्रंथ इसे महिलाओं के स्वास्थ्य से जोड़कर भी देखते हैं। संभवत: यही कारण है कि जब अपने परिवार के स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना हो, तो लोकसंस्कृति में वट वृक्ष की पूजा को प्रमुख विधान माना गया है।महाभारत के वन पर्व में इसका सबसे प्राचीन उल्लेख मिलता है। महाभारत में जब युधिष्ठिर ऋषि मार्कंडेय से संसार में द्रौपदी समान समर्पित और त्यागमयी किसी अन्य नारी के ना होने की बात कहते हैं, तब मार्कंडेय जी युधिष्ठिर को सावित्री के त्याग की कथा सुनाते हैं।